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करोड़ों की लागत और हल से समतल क्या यही है सरकारी निर्माण कार्य

करोड़ों की लागत और हल से समतल क्या यही है सरकारी निर्माण कार्य

 

रामगढ़ प्रखंड के बरमसिया पंचायत अंतर्गत सिजुआ गांव में सड़क निर्माण के नाम पर जो प्रहसन रचा जा रहा है, वह न केवल प्रशासनिक तंत्र की घोर उपेक्षा को उजागर करता है, बल्कि जनता की गाढ़ी कमाई से भरे सरकारी खजाने के दुरुपयोग का एक ताजा उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।

मुख्यमंत्री ग्राम सड़क सुदृढ़ीकरण योजना अंतर्गत पीडब्ल्यूडी रोड से सिजुआ गांव तक 3.3 किलोमीटर लंबी सड़क के सुदृढ़ीकरण कार्य का शिलान्यास 24 मई 2025 को बड़े धूमधाम और सरकारी तामझाम के साथ हुआ था। इस बहुप्रचारित योजना की लागत करीब करोड़ों रुपये में है। जिसे देख ग्रामीणों को यह विश्वास हुआ था कि अब उन्हें खराब और धूल-भरे रास्तों से निजात मिलेगी। लेकिन कुछ ही सप्ताह बाद यह बहुप्रतीक्षित योजना एक मजाक में तब्दील होती दिख रही है। निर्माण स्थल की वर्तमान स्थिति देख कोई भी विवेकशील नागरिक हतप्रभ रह जाएगा। सड़क निर्माण की गुणवत्ता इतनी निम्न और लापरवाह है कि यह निर्माण कार्य खेत तैयार करने की प्रक्रिया अधिक प्रतीत होती है, न कि एक आधुनिक पक्की सड़क का निर्माण। जहां मानकों के अनुसार पहले साफ-सफाई, समुचित टारकोल और रोड रोलर की मदद से मजबूत आधार बनाया जाना चाहिए था, वहां केवल डस्ट डालकर और ट्रैक्टर के हल से उसे समतल कर देने भर को बेहतर सड़क निर्माण माना जा रहा है। क्या यही है वह विकास जिसकी दुहाई मंचों से दी जाती है। यह पूरा मामला कई गंभीर सवाल खड़े करता है।

क्या यह करोड़ों की लागत से चल रहा सड़क निर्माण कार्य केवल कागजों पर मजबूत और धरातल पर खोखला है।

क्या जिम्मेदार अधिकारियों को यह नहीं दिख रहा कि नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। या फिर उन अधिकारियों ने अपनी आंखें जानबूझकर मूंद ली हैं। ताकि ठेकेदारों और अधिकारियों के गठजोड़ को कोई बाधा न पहुंचे। यह भी स्पष्ट है कि इस प्रकार का काम न केवल सरकारी धन का घोर अपव्यय है, बल्कि ग्रामीणों के साथ किया जा रहा एक घिनौना मज़ाक भी है। अगर ऐसा निर्माण कार्य रहा तो सड़क बनने के कुछ ही समय बाद यह फिर से धूल और कीचड़ में तब्दील हो जाएगी, और ग्रामीणों को पुनः उन्हीं नारकीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा जिनसे निजात दिलाने का वादा किया गया था। दूसरी ओर, योजनाओं को कागजों पर सबकुछ सही दर्शाकर अधिकारीगण अपने वातानुकूलित कार्यालयों में बैठकर संतोषपूर्वक फाइलों पर दस्तखत करते रहेंगे। लेकिन क्या यह रवैया उचित है। क्या यह लोकतंत्र और उत्तरदायी शासन व्यवस्था का मजाक नहीं है?

अब यहाँ सवाल यह खड़ा होता है कि कब तक ग्रामीण जनता को इस प्रकार की लापरवाही और अनदेखी झेलनी पड़ेगी।

कब तक ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत से विकास योजनाएं केवल दिखावा बनकर रह जाएंगी।

और सबसे महत्वपूर्ण सवाल कब तक जनता के टैक्स का पैसा यूं ही बर्बाद होता रहेगा।

संबंधित विभाग द्वारा ऐसे मामलों की उच्च स्तरीय जांच कराया जाना चाहिए और दोषी अधिकारियों तथा ठेकेदारों पर कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए। साथ ही, निर्माण कार्य की गुणवत्ता को पुनः जांच करके आवश्यकतानुसार इसे दोबारा मानक अनुसार पूरा किया जाना चाहिए।

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